'आंखिन देखी' हिंदी काव्य जगत के यशस्वी हस्ताक्षर यशपाल सिंह यशजी का नव्यतम काव्य संग्रह है। इस संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ने के बाद मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यशपाल सिंह यश जी समय सापेक्ष संवेदनाओं और वैज्ञानिक चेतना से लैस एक ऐसे कवि हैं जो अपने आसपास होने वाली हर हलचल और घटना को अपनी सतर्क दृष्टि से देखते हैं और फिर उन्हें बड़ी शाइस्तगी से अपनी कविता में ढाल देते हैं। सारा-का-सारा परिवेश इनकी कविताओं के आंगन में टहलकदमी करता हुआ दिखाई देता है। हमारे परिवेश में जो विसंगति है वह कितने सलीके से यश जी के काव्य-कथन की वक्रोक्ति बन जाती है। वह लहजा और कहन ही यश जी को कवियों की भीड़ से अलग अपनी एक चमकीली पहचान के साथ अलग खड़ा कर देता है। तभी तो वह कह पाते हैं कि-
'फिर से हुआ गुनाह, गई और एक जान
उत्सुक हैं पत्रकार कि हिंदू या मुसलमान'
पंडित सुरेश नीरव- चिंतक, कवि, पत्रकार
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