फूलबासन की कहानी में ग़रीबी का दंश है। वंश को बढ़ाने के नाम पर बेटा और बेटी में किया जाने वाला भेदभाव है। इस कहानी में भूखे पेट की आग है। इस आग में भस्म होते अरमान हैं। पिसता और घिसता बचपन है। भूख मिटाने के लिए किया जाने वाला संघर्ष है। इस संघर्ष के दौरान अमीरों के हाथों ग़रीबों का शोषण है। ज़मींदारों और साहुकारओं का ज़ुल्म-ओ-सितम है। स्वार्थी लोगों की निर्दयता और क्रूरता है। अगड़ी जाति के लोगों का अहंकार और अक्खड़पन है। इस अहंकार में दम तोड़ती दिखाई देती मानवता है। सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार है। सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की ग़रीबों के प्रति उदासीनता है। असामाजिक तत्वों की गुंडागर्दी है। हिंसा है, घरेलु हिंसा है। घर की चारदीवारी में थकती, हारती औरतों की ज़िंदगी है।
इन सबके साथ है, एक लड़ाई। लड़ाई भुखमरी के ख़िलाफ़, ग़रीबी के ख़िलाफ़, सामाजिक कुरीतियों के ख़िलाफ़, पुरुषों की महिला विरोधी मानसिकता के ख़िलाफ़। यह कहानी है साहस की, विद्रोह की, एक सामाजिक और आर्थिक क्रांति की, एक ग़रीब महिला के क्रांतिकारी बनने की। इस कहानी में चुनौतियों की भरमार है। अनेकानेक प्रतिकूल परिस्थितियाँ हैं। डराने वाले लोग हैं, डर है। डर के आगे जीत है। जीत भी कोई मामूली जीत नहीं, असाधारण जीत है। जीत है बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की, ग़रीबी पर संघर्ष की। यह कहानी है एक अतिसाधारण महिला के क्रांतिकारी नायिका बनने की। ग़रीबी और शोषण का शिकार रही एक ग्रामीण महिला के शक्ति का प्रतीक बनने की। लाखों लोगों के जीवन में खुशियाँ और ख़ुशहाली लाने वाली एक सामाजिक कार्यकर्त्ता की।
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