“गीत विन्यास” मेरे मूर्त अमूर्त भावों का आकाश है जो हर पल रंग बदलता है। इन बेज़ुबान भावों की अलग अलग कहानी है। इस बदलते हुए रंग में मेरा अस्तित्व आकार ग्रहण कर के पंख फैलाता है और मैं भावों के आकाश के विस्तार को छन्दों में समेट कर अपनी पहचान के गीत बुनती हूं। अतएव ‘गीतविन्यास’ गीतों का वह वन्दनवार है जिस में शब्दों में पिरोए गए भावों को कितनी कितनी शक्लों में चित्रित किया है और वह शब्दों में भी दिखते हैं। शब्दों से ही भावों की देह जागती है। जीवन के हर क्षण को बीन बटोर कर सृजन के कतरों में बिखेर देना ही मेरी कविताओं का लक्ष्य है। शोर के इस संसार में भावों की मौन भाषा है। अत: ये कविताएं मुझ में रमी हुई मेरी खामोशी को रचने बुनने की परिभाषा हैं। मैं को स्वयं में खोजती हुई सन्नाटे में छन्द बुनती हूं, चेतना में वेदना की खरोंचे रचती हूं, प्रेम रस में तरती हूं, प्रकृति के मध्य रमती हुई हरियाली पंछी नदिया पहाड़ सन्नाटा चुनती हूं। आकाश के चांद सितारे सूरज का घेराव फैलाव तनाव का पूरा नक्शा उकेरती हूं। भक्ति की आस से जुड़ती हूं श्रद्धा आस्था से झुकती हूं। शब्दों का सन्तुलन साध कर सुख दुख के छन्द लय में गतिवान कर सूनेपन और नीरवता में अपने रंग बिखेरती हूं। यह मेरा आत्मिक वक्तव्य हैं जो शब्दों को उन की सही जगह पर बसाते हैं जिससे शब्दों को भी अपनापन मिलता है। शब्दों की नियति भी यही है कि वह अपनी सही पहचान बना कर सही स्थान पर सही पते पर पहुंचें। सच कहूं तो इन कविताओं में मेरा अपना मिज़ाज ही बोलता है जो शब्दों के बहुल बिम्ब संसार कविता में ढल कर मेरी संवेदना का विषय बन गया है।
डॉ. सुमन लता वोहरा विरमानी