हस्तगत कविता संग्रह में प्रस्तुत कविताओं को लिखने का क्रम मेरे विद्यालयीकाल से ही प्रारंभ हो चुका था। वास्तव में संग्रह में प्रस्तुत कविताएँ मेरे मस्तिष्क में होने वाली हलचलों, हृदय में उठने वाले ज्वार, आंतरिक मनःस्थिति का चित्रण है। कविता को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक हम मानव हृदय की गहराई तक न पहुँच जाएँ। साधारण बुद्धि वाला मनुष्य कदाचित् ही कविता-कामिनी के रूप लावण्य का रसास्वादन ले सके। छिन्न-विछिन्न, कोमल, उदार हृदय ही कविता के रस का पान कर सकता है। कविता रस से परिपूर्ण एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिसको जितना अनुभूत करेंगे उतना ही हमें रसानुभूति कराएगी। कविता में छिपी मानसिक वेदना को, उद्वेग को, हर्षातिरेक की स्थिति को समझना अत्यंत अनिवार्य है अन्यथा कविता कामिनी के रूप लावण्य एवं सौन्दर्य की अनुभूति नहीं की जा सकेगी। ‘गुलदस्ता’ आधुनिक युग में अनवरत ह्रासमान मानवीय जीवन मूल्यों के प्रति आक्रोश के कारण रची गई रचनाएँ हैं। गुलदस्ता की कविताएँ कविता की कसौटी पर खरी उतरती हैं या नहीं यह तो सहृदय काव्य रसिक ही जानेंगे परंतु इस शुष्क रेगिस्तान में यदि उन्हें कहीं एक कण भी रस का उपलब्ध हो सका तो मैं अपने इस अल्प प्रयास को सार्थक समझूँगा।
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