सैकड़ों साल पहले जब कबीला संस्कृति प्रचलित थी, इस समय मध्य देश मे जगत कबीला नामक कबीले के वैद्यराज नामक वैद्य ने आयुर्वेद के ज्ञान से ऐसी चमत्कारिक औषधि बनाई जिसके लगातार 8 वर्षों तक किये गये प्रयोग से भुजवीर और संतोषी के मस्तिष्क में ऐसे अद्भुत परिवर्तन हुए कि उनके लिए समय की गति को समझना बड़ा आसान हो गया। जिसका मतलब था, समय की छोटी से छोटी इकाई को अनुभव करने के साथ-साथ उस पर कार्य करना। इसलिये उन्हें जरूरत पड़ी समय की सबसे छोटी इकाइयों की जो उन्हें प्राचीन ग्रंथो और वेदों से प्राप्त हुई। आइये इस कहानी में उनकी समय की गति को पहचानने की क्षमता जानने के लिये कहानी के एक वक्तव्य को पढ़ते हैं -
भुजवीर - हमारे कबीले के अनुसार समय की सबसे छोटी इकाई, एक क्षण
संतोषी - वेदों के अनुसार उससे छोटी इकाई एक निमेष, यानि एक बार पलक झपकने में लगने वाले समय के बराबर। जबकि 3 निमेष बीतने पर एक क्षण होता है
भुजवीर -उससे छोटी इकाई एक लावा, जबकि 3 लावा बीतने पर एक निमेष होता है
संतोषी - उससे छोटी इकाई एक वेध, जबकि 3 वेध बीतने पर एक लावा होता है
भुजवीर - उससे छोटी इकाई एक त्रुटि, जबकि 100 त्रुटि बीतने पर एक वेध होता है
लोहवीर - हां तुम दोनों एक त्रुटि को आसानी से समझ सकते हो। यही तुम दोनों के मस्तिष्क और सामान्य लोगों के मस्तिष्क में अंतर है। तुम दोनों एक क्षण को 2700 भागों में महसूस कर सकते हो, और उन पर काम कर सकते हो।
भुजवीर संतोषी की ओर देखकर - अभी एक तृसरेणु बाकी है।
संतोषी भुजवीर की ओर देखती हुई - हां एक तृसरेण एक त्रुटि को भी 3 भागों में बांट देता है। यानि त्रुटि से 3 गुना तेज।
पांचों लोग एक-दूसरे को देखकर मुस्करा देते हैं।
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