वो इंतज़ार किसी के वापस आने का, जब याद का लम्हा बन जाता हैं । फिर वो दर्द शिक़वों में बदल जाता हैं और ये एहसास जब शब्द के माध्यम से काग़ज़ पे तराशे जाते हैं, तब शायद इसलिए आज इस लफ़्ज़ का जन्म हुआ हैं । लफ़्ज़ सिर्फ़ एक शायरी की किताब नहीं है, ये वो शब्द है जो साथ में पिरो के अल्फ़ाज़ बन जाते हैं और ये वो शब्द है जो मन की गहराई में छुपे थे पर कभी ज़ुबान पर नहीं आये, ये मेरे जज़्बात हैं । शायरी एक ऐसा ज़रिया हैं जिससे हम अपने दिल की आवाज़ को कम से कम लफ़्ज़ में बया कर सकते हैं, इन 4 पंक्तियों को मोती कहा जाये तो ये 400 शब्दों की मोतियों का अनुभव कराती है । लफ़्ज़ की कहानी कुछ ऐसी ही है, कम से कम शब्दों में काफ़ी कुछ बया करने का प्रयास किया हैं । लफ़्ज़ में आपको प्यार, दर्द, बेवफ़ाई, यादें और मेरे कान्हा जी, सब मिलेंगे, उम्मीद है आप सबको ये किताब पढ़ के अपने मन में क़ैद तसव्वुर को उड़ने का मौक़ा मिले और आप अपने लफ़्ज़ों को खुल के बया कर सके, तो चलते हैं “लफ़्ज़ - एक याद, शिक़वा और एहसास” के इस खूबसूरत सफ़र पर, मुझे यक़ीन हैं आप इस सफ़र को बेहद पसंद करेंगें।
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