यह पुस्तक लोकतंत्र की खोज संसद भवन या नेताओं की रैली में नहीं करती है। यह पुस्तक लोकतन्त्र की खोज करती है चाय की चर्चाओं में, रेल के डिब्बों में, शयनकक्ष में, परिवार के निर्णयों में, प्रेमियों की चर्चाओं में, प्र्कृती के साथ सम्बन्धों में, ईश्वर की भक्ति में और जिहाद के नारों के बीच में। यह पुस्तक लोकतन्त्र को राजनीतिक आले से निकालकर धरातल पर बिछाने का प्रयास करती है।
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