‘रामायण’ आदिकाव्य है, न केवल भारतवर्ष का, अपितु सकल मानव-समाज का भी। महर्षि वाल्मीकि कृत यह काव्य पुस्तक वस्तुतः तत्कालीन इतिहास है: उस राजवंश का, जिसकी कीर्ति हज़ारों वर्ष पश्चात् भी आज तक अक्षुण्ण है। उस राजवंश के तत्कालीन यशस्वी सम्राट ‘राम’ का इसमें वर्णन है। राम-राज्य की व्यवस्था, जिसका वर्णन ऋषि ने किया है, आज भी शासन-व्यवस्था के हेतु आदर्श मानी जाती है।
लेखक ने संस्कृत और हिन्दी के ग्रंथ का मात्र सार रूप यहाँ प्रस्तुत किया है; सब प्रकार की काव्यात्मकता और अतिशयोक्तियों का निवारण करते हुए। साथ ही, आलंकारिकता को आधुनिक संदर्भों से जोड़ते हुए ऐतिहासिक-वैज्ञानिक अर्थों में भी विषय को समझाने का प्रयास किया है।
कितना यह किसको भाता है, यह तो हर व्यक्ति की अपनी-अपनी सोच पर निर्भर करेगा; बहरहाल लेखक ने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, वह भी इस दृष्टिकोण से कि नयी पीढ़ी अपनी बहुमूल्य विरासत – गौरवशाली इतिहास -- की ओर एकदम ध्यान नहीं दे रही है। उसका एक कारण ग्रथों का संस्कृत में होना, और अत्यधिक प्रतीकात्मक होने के कारण कपोल-कल्पित सा लगना, भी हो सकता है; उसी कारण का निवारण करने का यह विनीत प्रयास है।