जीवन मृत्यु के वाहन के आगमन की प्रतीक्षा में रत यात्री के कार्यकलाप और मनोदशा के अतिरिक्त क्या है! इस प्रतीक्षा में क्या-क्या अनहोनी अनुभूतियां नहीं होतीं! इस प्रतीक्षा को कम कष्टकर करने के लिए काव्य-शास्त्र अनुश्रवण की अनुशंसा मनीषियों ने की है। साथ ही प्रार्थना के माहात्म्य को भी स्वीकारा है।
मनो पुब्बङ्गमा धम्मा
मनो सेट्ठा मनोमया!
भगवान बुद्ध ने मन से ही सृजित होता हुआ इस सकल प्रपंच को बताया है। अतः मन को शुचि एवं निष्कंप रखकर आप संसार का अनुभव बदल सकते हैं। जब सभी कुछ कल्पित है तो सबको अपना मत अनुभव-जैसा लगता है। पर है वस्तुतः कपोल-कल्पित ही, न इसे सत्य कहने का कोई तात्पर्य है, न असत्य कहने का। बस मन को साधने का साधनभर है -- प्रार्थना।
अपने जीवन में जिन प्रार्थनाओं एवं प्राणांशों से ऊर्जा ग्रहण की, उनको सलीके से संचित करके ग्रंथाकार रूप दे दिया है। इसमें प्रार्थनाएँ भी हैं, प्रेरक काव्यांश भी हैं, संस्कृत-साहित्य के सूक्त भी हैं, और हैं उर्दू के ज़िन्दादिल शे’र और नग्मे। यदा-कदा ये प्रार्थना-प्राणांश पढने से आप भी ऊर्ज्वस्वित होंगे, ऐसी शुभकामनाओं के साथ,
‘विदेह’ अरविन्द कुमार, लखनऊ, उ प्र
अक्टूबर, 2025
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