स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साहित्यकार हैं उनके साहित्य का प्रयोजन कालातीत है। उनके लिए साहित्य उनके शब्द और कर्म दोनों में रचा बसा है। साहित्य की आधारभूमि पर स्थित रहकर वे राजनीति, समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, आर्थिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। उनके कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए से देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण उनके साहित्य पर शोध का कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मौलिक शोध कार्य के हित मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया। अपने शोध कार्य को अन्य शोधार्थियों के अध्ययन व सुविधा के लिए इस शोध ग्रंथ को मैं शिक्षा जगत को सौंपती हूँ।