समाज विसंगतियों का मारा है! इन्हीं विसंगतियों के सही समय पे इलाज न मिलने के कारण समाज एक जगह बैठ गया है और उसने ये मान लिया है कि वो दिव्यांग है! उसकी दिव्यांगता भी शारीरिक नहीं अथवा मानसिक है! लेखक ने प्रयास किया है कि कटाक्ष के बाणों का उपयोग इस समाज पे किया जाए ताकि गुस्से के आवेग से ही सही, कम से कम समाज उठकर चले तो सही अपने पैरों पर, समाज के पैरों पर!