महर्षि अगस्त्य के द्वारा कहे गये शक्तिसूत्र नामक ग्रन्थ में 305 सूत्र हैं। शक्तितत्त्व को निग्रहकर्म में प्रधान माना जाता है तथा शक्ति को निग्रहकारिणी कहते हैं। निग्रह का अर्थ नियन्त्रण करना होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ निग्रहागमों के द्वारा समर्थित सर्वेश्वरी विद्या आदि से युक्त तथा शक्तिसूत्रों पर निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरुजी के द्वारा लिखे गये सृष्टि भाष्य एवं हेमलता हिन्दी भाषानुवाद के साथ है।