“उस दिन पहली बार, मैंने नीरज को ध्यान से देखा था। वह मुझे मुग्ध दृष्टि से देख रहा था। गुलाबी साड़ी में लिपटी मैं, बीरबहूटी हो गयी थी। न जाने ये कैसा सम्मोहन, कैसा इन्द्रजाल मेरे चारों और बुनता जा रहा था। मैं भूल गयी थी कि मैं नीरज से पाँच वर्ष बड़ी और बहुत अधिक क्वॉलिफाइड हूँ……।
……आम के पत्तों और गेंदों के फूलों से सजे मंडप में जब पंडित जी ने मेरा कोमल हाथ नीरज के दृढ़निश्चयी हाथों में दिया, तो मेरा अंग-अंग रोमांचित हो उठा। मैं भूल गयी, कि मेरा विवाह कितनी कठिनाई से हो रहा है। और कैसे चुपके, चुपके……।”
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बासंती मौसम, फूलों की बहार और उससे भी सुन्दर सजना। पँखुरी दिवा स्वप्नों में डोलती रहती। तभी एक वज्रपात हुआ। जैसे क़ुदरत ने उनके साथ बहुत बड़ा मज़ाक किया था.....।
......पँखुरी फ़फ़क पड़ी। इतने दिनों का दबा हुआ लावा जैसे बह निकला,
“नहीं चाचीजी! सात फेरों के बंधन में नहीं बंधे तो क्या हुआ। मन से मन का बंधन तो है ना। मैं उनको नहीं भुला सकती......।
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“तुम्हारी कहानी” लगभग एक शताब्दी के नारी-जीवन की यात्रा को दर्शाती हैं, जिसमें नानी, दादी के ज़माने से लेकर इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग तक की लड़कियाँ भी मिलेगी। लगभग तीन पीढ़ियों की कहानियाँ।
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