उत्तरकाण्ड प्रसङ्ग एवं संन्यासाधिकार विमर्श नाम की यह पुस्तक चित्रकूट के तुलसी पीठाधीश्वर श्री रामभद्राचार्य जी के अशास्त्रीय वक्तव्य एवं धारणाओं का बचाव करने वाले उनके पक्षधरों के विरुद्ध निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी है | इस पुस्तक में उत्तरकाण्ड एवं उसके प्रसंगों को प्रामाणिक सिद्ध करते हुए श्रीभागवतानंद गुरु ने श्री रामभद्राचार्य जी के संन्यासी या जगद्गुरु होने के अधिकार एवं औचित्य पर प्रश्नचिह्न खड़े किये हैं | इस पुस्तक में सनातन धर्म के ग्रंथों में प्रक्षिप्त अंशों की संभावना व्यक्त करने वाले मत का भी खंडन किया गया है जिसका उत्तर रामभद्राचार्य ने "सीता निर्वासन और शम्बूक वध नहीं" पुस्तक लिख कर दिया है। उसके प्रतिखण्डन में निग्रहाचार्य ने "मूरख हृदय न चेत" लिखकर रामभद्राचार्य को लिखित शास्त्रार्थ में प्रमाणों के द्वारा पराजित किया और उत्तरकाण्ड को प्रामाणिक और रामायण का वास्तविक अंश सिद्ध किया।