विशुद्धोपागम निग्रहागमों के अन्तर्गत आने वाला एक उपागम है। इसे प्राणविद्या भी कहते हैं। यह नाभिदर्शना देवी और निग्रहाचार्य के मध्य हुए संवाद पर आधारित है। इसमें १८० श्लोक एवं १० अधिकार हैं। प्रसङ्गाधिकार में ग्रन्थ के अवतरण तथा तत्त्वमीमांसा का वर्णन है। स्थानाधिकार में देहस्थ प्राणों की अङ्गानुसार स्थिति बतायी गयी है। वर्णाधिकार में प्रत्येक प्राण से सम्बन्धित देवता एवं स्वरूप का वर्णन है। धर्माधिकार में प्राणों की क्रियाएं बतायी गयी हैं। यज्ञाधिकार में प्राणयज्ञ की विधि का सङ्क्षेपण है। आयामाधिकार में प्राणायाम की विधि और प्रभेद वर्णित हैं। प्रकोपाधिकार में प्राणों का प्रकोप से होने वाले रोगों का वर्णन है। चक्राधिकार में प्राणशक्ति एवं चक्रों के माध्यम से प्राप्त होने वाली सिद्धि तथा भूतशोधन का वर्णन है। प्राणाधिकार में ब्रह्माण्डस्थित सप्तविध प्राण, अग्नि एवं समिधा के विषय में बताया गया है। मोक्षाधिकार में प्राण का माहात्म्य एवं प्राणविद्या के लुप्त होने का कारण प्रकाशित किया गया है।