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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal"तलाश" जीत-हार, नायक-खलनायक की हदों को तोड़, दो ज़िंदगियों की गहराई में उतरती है, जो अनकही ख्वाहिशों और खुद को तलाशने की जद्दोजहद में एक-दूसरे से जूझते रहते हैं।
सार्थक और सना के रास्ते आपस में मिलते हैं और फिर बिखरते हैं। हर मुलाकात, हर बिछड़ाव उनके दिलों में एक गूंज छोड़ जाती है... यह समझाने के लिए कि कुछ रास्ते कभी खत्म नहीं होते... और कुछ ख्वाहिशें हमेशा अधूरी ही रहती हैं।
यह एक ऐसा सफ़र है, जो दिखाता है कि प्यार कैसे अनजानी जगहों में बस जाता है, भूली हुई यादों के कोनों में ठहर जाता है। आखिर में, यह हमें वो आईना दिखाता है, जिसमें हम अपने अंदर के अधूरेपन को पहचानते हैं... और ख़ुद को तलाश पाते हैं।
इन्हीं फैसलों की खामोश गूंज और उन अधूरी जगहों के बीच एक सवाल बाकी रह जाता है, जो हम सभी कभी न कभी ख़ुद से पूछते हैं -
"वो सब जो हमने खो दिया वो अगर लौट आए... तो क्या सब कुछ पहले सा हो जाएगा?"
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मनोज गर्ग - दिल्ली में रहने वाला एक आम सा इंसान, जिसने ज़िन्दगी में कभी कुछ ख़ास नहीं किया, कभी कुछ पूरे मन से नहीं किया। जिसे यह भी नहीं पता था कि उसकी ज़िन्दगी किस ओर जा रही है। कश्मकश में पड़ा, अपनी साँसों की आवाज़ सुन, अपनी राह तलाशने की कोशिश करता रहा। फिर एक दिन, मोहब्बत ने दस्तक दी, जिसने उसके बिखरे हुए ख्वाबों को एक नया मतलब दिया।
यही मोहब्बत उसे खुद के करीब ले आई और उसे खुद को तलाशने का हौसला दिया, अपनी बात कहने का हौसला दिया। इसी सफर पर चलते हुए, 2020 में आई उनकी शायरी की किताब "सांस" से शुरू हुआ यह सिलसिला अब "तलाश" के ज़रिए एक नए मुकाम की ओर बढ़ रहा है।
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