लघुकथा का अपना अलग मिजाज होता है. यह कहानी की तरह विस्तृत पलक की नहीं होती है. उपन्यास तो इस से भी बड़ी चीज है. यह तो क्षण विशेष को अभिव्यक्त करने के लिए एक विधा है. जिस में अपनी तीक्ष्णता के कारण पाठक के मन में एक टीस पैदा करने की क्षमता रखती है.
जिस तरह एक व्यक्ति की अपनी पसंद होती है वैसे ही लघुकथाकारों की अपनी पसंद होती है. एक मांसाहारी व्यक्ति को किसी निरीह जानवार का मांस खाने में आनंद की अनुभूति होती है. वहीं उसी व्यक्ति को दाल खाना किसी कचरे को खाने जैसा लगता है. ठीक उसी तरह एक शाकाहारी व्यक्ति की अपनी पसंद हो सकती है. उस के लिए मांसाहार बेकार की चीज होती है. वैसे ही दाल सर्वोत्तम आहार या सब्जी होती है.
इसी तरह हरेक समीक्षक के लिए लघुकथा को मापने के अपने मापदंड होते हैं. मैं ने अपने अनुभव से महसूस किया है कि लघुकथा में अपनीअपनी खेमेबाजी है. एक खेमे को लघुकथा में पंच लाइन बहुत प्यारी लगती है वहीं दूसरे खेमे को यह नागवार गुजरती है. एक खेमा लेखक की उपस्थिति को निषेध मानता है वही दूसरा खेमा इस पर ज्यादा जोर नहीं देता है. उस का मानना है कि लघुकथा अपना प्रभाव छोड़ जाए, यही बहुत है.