“एक फैसला जो देश की तकदीर बदल सकता है... लेकिन क्या वह खुद को बदलने से रोक पाएगा?"
एक ईमानदार न्यायाधीश, जिसकी हर फैसला चट्टान की तरह अडिग रहा है, अब अपने जीवन के सबसे कठिन निर्णय के मोड़ पर खड़ा है । सत्य और न्याय की रक्षा में पूरी ज़िंदगी समर्पित करने वाला यह व्यक्ति अब न केवल राजनीतिक दबाव बल्कि अपने ही परिवार की परीक्षा का सामना कर रहा है । जिस नैतिकता पर उसे गर्व था, वही अब उसकी सबसे कठिन कसौटी बन चुकी है ।
जब वह चुनावी धांधली को उजागर करता है, तो उसका फैसला सत्ता के गलियारों में भूचाल ला देता है । भ्रष्ट नेता उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगते हैं । लेकिन सबसे गहरा धोखा बाहर से नहीं, बल्कि उसके अपने घर से आता है—जिस परिवार की रक्षा के लिए उसने हमेशा लड़ाई लड़ी, वही अब उसे रिश्वत स्वीकार करने और सत्ता से समझौता करने के लिए मजबूर कर रहा है ।
अब, व्यवस्था उसे देश के सर्वोच्च पद का प्रस्ताव देती है—एक शर्त पर: उसे अपने सिद्धांतों को त्यागना होगा। चारों ओर से बढ़ते दबाव—राजनीति, सत्ता तंत्र और अपने परिवार—के बीच उसे निर्णय लेना होगा ।
क्या वह इस अग्निपरीक्षा में अडिग रह पाएगा? क्या वह अपने आदर्शों की रक्षा करेगा, या फिर यह भी सत्ता के नैतिकता पर विजय की एक और कहानी बनकर रह जाएगी?
“एक फैसला जो न सिर्फ देश, बल्कि उसकी आत्मा की तकदीर बदल सकता है… क्या वह झुकेगा, टूटेगा, या इतिहास में अपनी पहचान अमर करेगा?"
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