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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआधी रात में घने जंगल के बीचों बीच बने पुराने किले के भीतर खम्बों के पीछे चारों छिपे हुए थे, बीच के कम उंचाई के चार खम्बों के ऊपर आग जलने से पीली रोशनी में अब सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था। लताओं से आधी से ज्यादा दीवालें भरी हुई थीं। पिंजरे में बंद उल्लू पक्षी की गोल गोल आंखें आग की पीली रोशनी में और भी भयानक प्रतीत हो रही थीं। ‘‘ऊऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ’’ खण्डहर के बाहर से एक लंबी आवाज सुनाई देती है। ‘‘ये अंदर क्या कम डरावना है प्रभु जो बाहर से भी ऐसी आवाजें भेज रहे हो।’’ रमेश ने खम्बे के पीछे छिपे हुए ही ऊपर की ओर देखते हुए कहा।
‘‘बिल्कुल यही.....हां यही तो मुझसे छूट रहा था......इस 2020 में उस कुर्सी पर......हां उसी के साथ घटना घटित होने वाली है..........इस घटना को रोकना होगा..........यानि उसको छोड़कर ऑफिस के सभी लोग सुरक्षित हैं, यदि वे उस आखिरी कुर्सी के पास नहीं जाते हैं तो........वही है जिसे पिछले 3 की तरह वो आखिरी कुर्सी अपनी ओर आकर्षित करेगी.......हां उसे रोकना होगा....’’
ऐसे ही रहस्यों से भरी इस यात्रा में शामिल होने के लिए आइये इस कहानी ‘‘रहस्यमयी यात्रा 2020’’ में प्रवेश करते हैं -
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Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.डाॅ. अभिषेक श्रीवास्तव
जबलपुर, (मध्यप्रदेश), निवासी डाॅ. अभिषेक श्रीवास्तव, द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेन्ट ऑफ इंडिया से प्रमाणित तकनीकी लेखापाल हैं, साथ ही आंतरिक अंकेक्षक भी हैं। एम.काॅम ई-काॅमर्स से, एम.एससी. कम्प्यूटर साइंस से एवं संगीत शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत लेखन की दुनिया में इन्होंने कदम रखा और वर्तमान दौर के भारतीय लेखकों में भी अपना एक स्थान बना चुके हैं। लेखक अपने पिता डाॅ. संत शरण श्रीवास्तव को प्रेरणास्रोत मानते हैं।
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